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कवित्त - सीता | Kavitta - Sita

  • Writer: Jui Karhadkar
    Jui Karhadkar
  • Aug 22, 2024
  • 1 min read

'Kavitta' is poetic expression of words in Awadhi dialect, along with the bol of 'Tatkaar' in Kathak


ओ सीता तुम मृदु मुसकाए

क्यों छबी अपनी बृहत छुपाए


जय रघुवीर जय रघुनंदन

क्यों सुनती हो केवल अखंड


पराक्रमी तुम परमनिरंतर

फिर क्यों देखत हमरी रंगत

तकदिमी ताथुंग तकदिमी ताथुंग

तकीट तकीट तक तकदिमी ताथुंग


ओ रघुनंदन तुम क्या जानो

संसार में तो तुम ही निरंतर

वाल्मिकी लिखत तुम्हरे गुणगान

शक्ती युक्ती सब तुम्हरी परम


इस धरती पर तुम ही महान

मगर यह केवल इस धरती पर


समानांतर एक जग है खोजा

उत जय सीता एक ही नारा


काही तुम परम काही तुम दुय्यम

काही हम परम काही हम दुय्यम


उत चर्चा है हमरी कायम

उत हम सुंदर हम बालवान


किंतु वहाँ हम दोनो खुश हैं

सीता नवमी सांग राम नवमी है


वह जग है हमने सहलाया

उत प्रजा में है माफी माया


याही भेद है सीतायन में

की अंत तक हम दोनो संग हैं


तकीट तकीट तक

तकीट तकीट तक

तकीट तकीट तक

तकीट तकीट तक धा!

 
 
 

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